Gautam Buddh – गौतम बुद्ध के अंतिम समय में क्या हुआ

जिन गौतम बुद्ध के भारतीय महाद्वीपों से लेकर चीन , कोरिया , जापान , मंगोलिया और पश्चिमी देशो तक अनुयायी है , क्या थी उनकी अंतिम समय की कहानी। जानिये सिद्धार्थ गौतम से गौतम बुद्ध बनने तक का सफर।

Born of Gautam Buddh in Lumbini garden

जन्म , युवावस्था व परिवार

Gautam Buddh – गौतम बुद्ध का जन्म 571 ईसा पूर्व में वैशाख पूर्णिमा , कपिल वस्तु के पास नेपाल में लुंबिनी के प्रसिद्द उद्यान में हुआ था । इनका जन्म एक इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। जन्म के समय गौतम बुद्ध का नाम सिद्धार्थ गौतम रखा गया जिसका अर्थ है “वह जो सिद्धी प्राप्ति के लिए जन्मा हो“।उनकी माँ का नाम महामाया था जो कोलीय वंश से थीं, जिनका इनके जन्म के सात दिन बाद निधन हुआ, उसके बाद उनका पालन महारानी की छोटी सगी बहन महाप्रजापती गौतमी ने किया।16 वर्ष की आयु में सिद्धार्त गौतम का विवाह यशोधरा से हुआ जिनसे उनके पुत्र राहुल का जन्म हुआ।सिद्धार्थ गौतम का आचरण – व्यव्हार ,करुणा और दया से भरा हुआ था , वे किसी भी इंसान या जानवर पे हो रहे किसी भी तरह के अत्याचार को नहीं देख सकते थे। जब कभी वह घुड़सवारी करते हुए देखते के घोड़े के मुँह से झाग आ रहा है वे घोड़े को थका मान कर उसे वही पे रोक देते थे और जीती हुई बाजी भी हार जाते थे।

वैराग्य

asceticism of Gautam Buddh

Gautam Buddh – राजा शुद्धोधन ने गौतम की शादी के बाद उनके लिए भोग-विलास का भरपूर प्रबंध कर दिया थे । तीन ऋतुओं के लायक तीन सुंदर महल बनवा दिए। वहाँ पर नाच-गान और मनोरंजन की सारी सामग्री जुटा दी गई। दास-दासी उसकी सेवा में रख दिए गए। पर ये सारी चीजें सिद्धार्थ को संसार में बाँधकर नहीं रख सकीं। वसंत ऋतु में एक दिन सिद्धार्थ बगीचे की सैर पर निकले थे। उन्हें सड़क पर एक बूढ़ा आदमी दिखाई दिया। उसके दाँत टूट गए थे, बाल पक गए थे, शरीर टेढ़ा हो गया था। हाथ में लाठी पकड़े धीरे-धीरे काँपता हुआ वह सड़क पर चल रहा था। दूसरी बार सिद्धार्थ जब बगीचे की सैर को निकले , तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। तीसरी बार सिद्धार्थ को एक अर्थी मिली। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था। इन दृश्यों ने सिद्धार्थ को बहुत विचलित किया। उन्होंने सोचा कि ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और मौत सदा इसी तरह होती रहेगी सौम्य? चौथी बार कुमार बगीचे की सैर को निकला, तो उसे एक संन्यासी दिखाई पड़ा। संसार की सारी भावनाओं और कामनाओं से मुक्त प्रसन्नचित्त संन्यासी ने सिद्धार्थ को आकृष्ट किया।

29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ ने सूंदर पत्नी यशोधरा , दूध मुहे बच्चे राहुल और कपिलवस्तु जैसे राज्य का मोह छोड़कर त्याग तपस्या के लिए निकल गए। सिद्धार्थ ने भिक्षा मांगी , समाधी लगाना सीखा , योग साधना सीखी, तरह तरह के तपस्या करने लगे पर इससे वह संतुष्ट नहीं हुए। पहले तो सिद्धार्थ सिर्फ तिल और चावल खा कर तपस्या किया करते थे और आहार लेना बंद कर दिया था , जिसके कारण उनका शरीर सुख कर काँटा हो गया था। इससे वह मान गये कि नियमित आहार-विहार से ही योग सिद्ध होता है। अति किसी बात की अच्छी नहीं। किसी भी प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही ठीक होता है ओर इसके लिए कठोर तपस्या करनी पड़ती है।

ज्ञान की प्राप्ति

enlightenment of gautam Buddha

Gautam Buddh – बुद्ध के प्रथम गुरु आलार कलाम थे,जिनसे उन्होंने संन्यास काल में शिक्षा प्राप्त की , शिक्षा लेने के बाद आलार कलाम ने उन्हें कहा की सिद्धार्थ अब संन्यास और ध्यान का ज्ञान जितना मुझे है , तुम्हे भी उतना ही ज्ञान है तुम यही रह कर बाकी शिष्यों को मेरे साथ यह विद्या सिखाने में मदद करो। परन्तु सिद्धार्थ को किसि एक जगह में रुकने पर रूचि नहीं थी । इसी तरह 35 वर्ष की आयु में वैशाखी पूर्णिमा के दिन सिद्धार्थ पीपल वृक्ष के नीचे ध्यानस्थ थे। बुद्ध ने बोधगया(वर्तमान में बिहार का एक शहर)में निरंजना नदी के तट पर कठोर तपस्या की तथा सुजाता नामक लड़की के हाथों खीर खाकर उपवास तोड़ा। समीपवर्ती गाँव की एक स्त्री सुजाता को पुत्र हुआ।वह बेटे के लिए एक पीपल वृक्ष से मन्नत पूरी करने के लिए सोने के थाल में गाय के दूध की खीर भरकर पहुँची। सिद्धार्थ वहाँ बैठा ध्यान कर रहा था। उसे लगा कि वृक्षदेवता ही मानो पूजा लेने के लिए शरीर धरकर बैठे हैं। सुजाता ने बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर भेंट की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो। उसी रात को ध्यान लगाने पर सिद्धार्थ की साधना सफल हुई। उसे सच्चा बोध हुआ। तभी से सिद्धार्थ ‘बुद्ध’ कहलाए। जिस पीपल वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध मिला वह बोधिवृक्ष कहलाया और गया का समीपवर्ती वह स्थान बोधगया

गौतम बुद्ध का अंतिम समय

Last lines of Gautam Buddha

Gautam Buddh– “अप्प दीपो भवः” अपने अंतिम समय में बुद्ध ने अपने शिष्य भद्रक को यह पंक्ति कही थी , लेकिन इस पंक्ति से इतर बुद्ध के परिनिर्माण की कहानी बहुत भावुक कर देने वाली है। गौतम बुद्ध की मृत्यु 485 ईसा पूर्व में कुशीनगर(उत्तर प्रदेश का एक शहर) में हुई थी , उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष की थी। बौद्ध धर्म के अनुयायी इसे महा परिनिर्माण कहते है , लेकिन उनकी मृत्यु के बारे में बौद्ध बुद्धिजीवी और इतिहासकार एक मत नहीं है। बुद्ध को जब यह आभास हुआ की भूलोक में अब उनके पास ज्यादा समय नहीं है तो उन्होंने वैशाली को छोड़ा , बुद्ध को यह आभास हो चला था की काल आहट दे रहा है। 485 ईसा पूर्व में बुद्ध परिनिर्माण के लिए लेटे। उस समय उनके साथ सिर्फ एक व्यक्ति थे उनके सबसे भरोसेमंद और पहले शिष्य आनंद , जो उनके साथ 24 घंटे रहते थे।

कहानी है की प्रवास के दौरान एक चून्द नाम के लोहार ने उन्हें खाना खिलाया, इस खाने की वजह से बुद्ध की तबियत बिगड़ी , बुद्ध की उम्र तब 80 वर्ष की थी और उन्हें ज्ञात हो गया था की इस देह का समय पूरा हो गया है। उन्होंने आनंद से दो बाते कही –

अंतिम दो बाते

पहली बात की चून्द पर किसी भी तरह से दोष न मडा जाए की उनकी वजह से मेरी देह बीती है , बुद्ध ने कहा ये मेरा कर्म था, ये तो चून्द के सत्कर्म है की उसने मुझे धरती का आखरी भोजन कराया।

दूसरी बात उन्होंने कही की परिनिर्माण के बाद दुनिया भर में सिर्फ चार स्थानों से वह नाता रखना चाहते है। इसमें पहली जगह थी लुंबिनी जहां 571 ईसा पूर्व उनका जन्म हुआ था , दूसरी थी बोधगया जहां उन्हें सिद्धि प्राप्त हुई , जहां सिद्धार्त से वे गौतम बुद्ध बने , तीसरी थी सारनाथ (वाराणसी के पास का शहर ) जहां उन्होंने अपना पहला धर्मोपदेश दिया और चौथी थी कुशीनगर जहां उन्होंने अपनी अंतिम स्वास ली।

                                         बुद्ध के आखरी शब्द थे " सबकुछ नष्ट  हो जाता है। (लेकिन) अपने लक्ष्य के लिए लगन से लगे रहो " 

Source – Wikipedia , Books & Stories.

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